Sunday, November 16, 2014

एक पैगाम

आदरणीय ताऊजी

वैसे तो मैं यहाँ अपनों से कोसो दूर हूँ पर जब भी किसी से बात करने का मन करता हैं या अपने मन की बात साझा करनी होती हैं,  फोन पर बात करने से दूर होने के दर्द को थोड़ा सुकून तो मिल ही जाता हैं।

मैं यहाँ बहुत खुश हूँ और मैंने अपनी यहाँ एक छोटी सी दुनिया बसा ली हैं।  फिर भी कभी-२ मन तनहा तो हो ही जाता हैं।  कल एकाएक आपसे बात करने का बहुत मन हुआ और हमेशा की तरह आपसे जवाब पाने की असक्षमता मेरे आँखों में आये आंसुओ को रोक पाने में भी विफल रही.

कुछ पलो के लिए सब कुछ थम सा गया था मानो। फिर दिल को समझाया, और आपसे जुडी हर यादो को शब्दों में पिरोना शुरू किया। जब यादे शब्दों का रूप ले रही थी, ऐसा लग रहा था मानो आप बगल में बैठकर मेरी बातें पढ़ रहे हो और इस बार जवाब जरूर दोगे।

  • मुझे याद हैं आप अपने बच्चों के इंतज़ार में घर की छत पर अक्सर बेचैन होकर चक्कर लगाया करते थे. संजू-पिंटू भैया ने आपको बहुत इंतज़ार कराया हैं। 
  • मुझे याद हैं कैसे आप डोली-नीतू दीदी के परीक्षा परिणाम पर 1st , 2nd  और 3rd डिवीज़न आने पर अखबार पर ही राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और प्रधाममंत्री लिख दिया करते थे।  
  • याद हैं मुझे जिस दिन घर पर आलू के कोफ्ते बनते थे, जब आप आमरस बनाते थे। जब हम सब घंटो बातो में बैठा करते थे और चाय के अनगिनत दौर चलते थे। 
  • वो ताश की बाजिया, बुरे से बुरे पत्तों पर भी आप अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर खेल शुरू होने से पहले ही जीतने का एहसास करा देते थे। 
  • शायद ही कोई ऐसी फिल्म होगी जो आपने देखी नहीं हो, हर रविवार सुबह रंगोली देखते वक़्त हमे इसका प्रमाण मिल जाता था. 
  • आपका घर में दफ्तर और अलमारी में रखे कागज़ और फाइलें। आज तो वह कमरा पिंटू भाई का हैं। 
  • कैसे आप वो फटाफट से तूफ़ान की तरह फ्रेश हो जाया करते थे। 
  • लादिया की गलियो में आपकी यज़्दी मोटरसाइकिल की ढक-२ करती आवाज़ दूर से ही आपके आने का एहसास करा देती थी। 
आप को शायद इस बात का एहसास नहीं हैं कि मुझे बहुत कुछ कहना था आपसे। आपके जाने के बाद, मैंने कितनी ही बार आपको सपनो में देखने की कोशिश की।  आप बहुतो के सपनो में आये पर मेरे नहीं। मैंने कई बार आपको हिल स्टेशन पर ढूंढने की भी कोशिश की और यकीन मानो आज भी करता हूँ।  दिल को एक विश्वास सा हैं की आप ऐसे ही किसी मोड़ पर चलते हुए मिल जाओगे।  

आज जब भी विजय नगर वाले घर पर जाता हूँ , आपकी यादें वहाँ बसी हुई लगती हैं। जब चिराग पुण्य ने मुझसे पूछा बाबा के बारे में बताओ, वो कैसे थे तो मैं यह सब बातें उनको बताने लगा।  वो खुश होकर सुनते रहे।  कान्हा, भविन, चिराग पुण्य मिलकर चारो बहुत धमाल मचाते हैं। शिवेन पापा को बहुत प्यार से दादू बोलता हैं। किट्टू, ख़ुशी और राधेय भी इसको पढ़कर आपके बारे में और जानेंगे।  

आपका बनाया वो घर , निभाए हुए वो रिश्ते, आपके संस्कार, वो मोटरसाइकिल, जो आज आवाज़ तो नहीं करती, पर घर पर हमारे साथ हैं|  हर घर में आपकी तस्वीर लगी हैं जिसका हम हर सुख-दुःख में सजदा करते हैं। हमने आपकी हर याद को संझो कर रखा हुआ हैं। 

आप सोच रहे होंगे कि आज मैं इतना भावुक कैसे हो गया, न तो आज गोवेर्धन पूजा हैं और न आज २० अप्रैल हैं. पर आज मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आपकी यादें इन २ दिनों में सिमट कर नहीं रह गयी हैं।  

मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हम सब आपको बहुत याद करते हैं और आपकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता। आपकी यादें साझा करने से दिल हल्का महसूस कर रहा हैं। आपसे जुडी हुई हर अच्छी बुरी यादें हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं।  उनको याद करके भावुक होने से दर्द बढ़ता नहीं, बल्कि कम होता हैं। 
आप जहा हो, खुश रहो। 
आपका रबड़ी 
     

2 comments:

  1. Ravi, it is very deep and beautiful. amazing piece of work.

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  2. Hello Brother,
    There were a lot of feelings that were submerged by the busy lifestyle we endeavour but there was always a part that always remembers our Tauji.
    I was very your at the time of his unfortunate demise and I dont remember him that much but whatever I do remember I always cherish it and there are some instances with our Tauji that I never did or will forget.
    Thanks bhaiya for refreshing and at the same time adding more memories of their life.

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