Saturday, December 16, 2017

तो क्या हो जायेगा?

"माँ, मैं गौरव से शादी नहीं कर पाउंगी। मैं पापा को बताने में थोड़ा हिचक रही थी, तो सोचा आपको बता दूँ पहले. क्या आप पापा को बताने में मेरी मदद करोगी?" स्नेहा के सटीक अंदाज़ से कहे हुए शब्दों से माँ बिलकुल सन्न रह गयी. उनके बगल में बैठी उनकी छोटी बेटी प्रिया भी स्नेहा के इस फैसले से अनजान थी. दोनों को इस बात का अंदाजा नहीं था. होता भी कैसे, अभी 3 महीने पहले ही स्नेहा और गौरव की शादी तय हुई थी और 2 महीने में ही दोनों की शादी होने वाली थी.

"ये क्या बोल रही हैं तू! होश में तो हैं?" माँ अभी भी विश्वास नहीं कर पा रही थी कि स्नेहा ने ऐसा कुछ कह दिया है जो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी.
प्रिया ने स्नेहा को अपने पास बैठने को कहा.

"हाँ माँ, मैंने फैसला लिया हैं कि मैं गौरव से शादी नहीं करुँगी." स्नेहा ने अबकी बार सीधे और सरल शब्दों में अपनी बात को दोहराया.
"यह जानते हुए भी कि शादी 2 महीने में हैं. सभी रिश्तेदारों को पता चल चुका हैं. शादी की लगभग सारी तैयारियां हो चुकी हैं." माँ ने अब सामाजिक व्यवहारिकता का हवाला देना शुरू कर दिया.
स्नेहा ने सिर्फ हाँ कहकर माँ का जवाब दिया.
"सिर्फ हाँ. तुझे हमारी इज़्ज़त का बिलकुल भी ख़याल नहीं हैं न." माँ की सख्ती बरकरार थी.
माँ को बीच में काटती हुए प्रिया बोली "माँ इसमे इज़्ज़त की बात कहाँ से आ गयी. आप सुन तो लो दीदी ने ऐसा फैसला क्यों लिया हैं?"

माँ की गुस्से भरी निगाहो को नज़रअंदाज़ करते हुए प्रिया ने स्नेहा को इस फैसले की वजह बताने को कहा.
"प्रिया, मुझे पता था कि माँ और पापा इस बात को तवज्जो कतई नहीं देंगे कि मैंने ये फैसला क्यों लिया हैं. मुझे ख़ुशी हैं कि तू इतनी छोटी उम्र में भी इस बात को समझ रही हैं."

माँ के रुख में अब एकाएक नरमी आ गयी. हो सकता हैं माँ को अपराध बोध हुआ हो.

स्नेहा ने अपनी बात को जारी रखा "आप सब को ये बात जानने का पूरा हक़ हैं कि मैं इस नतीजे पर क्यों पहुंची हूँ. मैं गौरव से 3 महीने पहले ही मिली थी. उसी दिन हमारा रोका हो गया था. सब कुछ इतनी जल्दी हुआ. पर मैं रिश्ते से खुश थी. मैंने वो फैसला दबाव में नहीं लिया था. गौरव पढ़ा लिखा हैं. नौकरी कर रहा हैं. परिवार वालो को आप सब अच्छे से जानते ही थे."

"फिर क्या हो गया बेटी?" माँ की नरमी अब उनके शब्दों में भी दिखने लगी थी. इससे स्नेहा को थोड़ा हौसला मिला. 
"माँ, सब कहते हैं कि सगाई से शादी का वक़्त गोल्डन पीरियड होता हैं. ये वक़्त दोबारा लौटकर नहीं आता. इसमें मस्ती करनी चाहिए. पिछले 3 महीनों में मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा. मेरा मकसद था गौरव को समझना. उसके विचारो को जानना, विशेषकर मेरी खुद की आत्मनिर्भरता को लेकर -- जैसे कि वो खुद और उसके परिवार वाले मेरे शादी के बाद जॉब के बारे में क्या सोचते हैं."

"गौरव क्या सोचता हैं दीदी इन सब बातों पर." प्रिया ने पूछा।

"उसने इन सभी बातों को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं. उसका ध्यान बस शादी के बाद घूमने कहाँ जाना हैं, घर बदलना हैं, शादी में गाडी कौनसी मिलेगी! इन सब बातों पर ही होता था."
"तो इसमे गलत ही क्या हैं स्नेहा। शादी के बाद यह सब चीज़े भी बहुत ज़रूरी हैं." माँ का सवाल प्रिया को भी जायज़ लगा.
"हां माँ, कोई बुराई नहीं हैं इन सबके बारे में बात करने में. मैंने पिछले 26 सालो में पढ़ाई की और नौकरी की. क्या मेरी प्रोफेशनल महत्वकांक्षाये शादी के बाद ख़त्म हो जानी चाहिए."


"देख गौरव सिगरेट और शराब नहीं पीता। बैंगलोर में अच्छी नौकरी हैं. अच्छी सैलरी हैं. तू जॉब नहीं भी करेगी तो भी तुम अच्छी ज़िन्दगी बसर कर सकते हो. इतना एडजस्टमेंट सभी करते हैं स्नेहा, तू अकेली नहीं हैं." माँ के शब्द हमारे इर्दगिर्द बसे लोगो की सोच को उजागर कर रहे थे. बहुत से लोग बस अपनी बेटियों को पढ़ाते जरूर हैं पर होती वो मैरिज मटेरियल ही हैं उनके लिए.

"क्या बात कर रही हो माँ. दीदी ने इंजीनियरिंग की हैं. नौकरी हैं. अब शादी हो रही हैं तो वो जॉब छोड़ दे?" स्नेहा की जगह प्रिया ने माँ से सवाल किया.
"पर गौरव बहुत अच्छा कमा रहा हैं प्रिया" 

 "माँ जॉब सिर्फ पैसो के लिए ही नहीं की जाती हैं. इससे हम आत्मनिर्भर बनते हैं.  हम पहले किसी की बेटी, फिर बीवी और आखिर माँ और दादी बनकर ही रह जाते हैं. नौकरी हमे अलग पहचान देती हैं."
प्रिया की बातें सुनकर स्नेहा अपने आंसू रोक नहीं पायी। उसे गले से लगाकर स्नेहा ने धीरे से उसके कान में कहा "थैंक यू प्रिया."
दोनों बहनो का प्यार देखकर माँ के भी आंसू टपक पड़े. "मुझे माफ़ कर दो तुम दोनों, मैं अपनी ही इन दकियानूसी सोच में अटकी हुयी हूँ.

माहौल के सामान्य होने पर स्नेहा बोली "माँ मुझे आपके शादी की तैयारियों में हुए खर्च पर बहुत दुःख हैं पर मैं अपनी सेविंग्स से उनकी भरपाई कर दूंगी माँ"
"चल पगली. तेरी ख़ुशी से ज़्यादा कुछ भी नहीं रे. पर मैं सोच रही हूँ की लोगो को क्या बताएँगे." माँ की एक टांग अभी भी लोगो की सोच में अटकी हुयी थी.

"देखो माँ आप कुछ कहो या न कहो, ये दुनिया अपनी कहानी खुद ही बना लेगी. इनकी परवाह मत करो. शुक्र मनाओ दीदी एक रिश्ते से बहार निकली हैं खुद की मर्ज़ी से और खुद की बेहतरी के लिए. डाइवोर्स और ब्रेकअप को हमे गलत नज़रिये से देखना ही नहीं चाहिए. बल्कि ये तो अच्छा हैं कि दो लोग ऐसे सम्बन्ध से बहार निकलते हैं जिसको वो ताउम्र निभा नहीं सकते. वजह चाहे कुछ भी हो."
माँ और स्नेहा ने प्रिया की बात पर हस्ते हुए, हाथ जोड़कर और सर झुकाकर जोर से कहा "जय हो प्रिया माता की"
फिर तीनो जोर जोर से हसने लगे.